किडनी खराब होने के बाद व्यक्ति का बचना नामुमकिन है! पहले इस बात पर विश्वास किया भी जा सकता था लेकिन अब मेडिकल साइंस काफी तरक्की कर चुका है। इसी तरक्की का नतीजा है किडनी ट्रांसप्लांट । कहने का मतलब ये है कि अब किडनी खराब होने के बाद भी व्यक्ति को नयी जिंदगी मिल सकती है। सर्वे की मानें तो अमेरिका के बाद किडनी ट्रांसप्लांट के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है1। साल 2015 में एक सर्वे में ये बताया गया था कि भारत में तकरीबन 2 लाख 20 हजार लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट करवाने की जरूरत थी। इसमें से लगभग 7 हजार 500 लोगों का ट्रांसप्लांट भारत के 250 किडनी ट्रांसप्लांट सेंटर में किया गया था। इसमें से 90% ट्रांसप्लांट जीवित दाताओं (Living Donor) और 10% ट्रांसप्लांट मृत दाताओं (Deceased Donor) की मदद से हुआ था।
जानें क्या होता है किडनी ट्रांसप्लांट?
किडनी ट्रांसप्लांट एक सर्जिकल प्रक्रिया है। इसमें मरीज की खराब किडनी को निकालकर उसकी जगह पर स्वस्थ किडनी को स्थापित किया जाता है। इस प्रक्रिया में डोनर की सबसे अहम भूमिका होती है क्योंकि उन्हीं की स्वस्थ किडनी मरीज में ट्रांसप्लांट की जाती है। किडनी खराब होने पर डायलिसिस की तुलना में किडनी ट्रांसप्लांट को बेहतर विकल्प माना जाता है।
किडनी ट्रांसप्लांट के प्रकार
किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया 2 तरीके से की जा सकती है।
1. लिविंग डोनर किडनी ट्रांसप्लांट (Living Donor Kidney Transplant)
इसमें जीवित व्यक्ति अपनी एक स्वस्थ किडनी उस मरीज को देता है जिसकी किडनी खराब हो चुकी होती है।
2. मृत डोनर किडनी ट्रांसप्लांट (Deceased Donor Kidney Transplant)
इसमें अगर मृत व्यक्ति के करीबी अंगदान का फैसला लेते हैं तो उसकी किडनी मरीज में ट्रांसप्लांट कर दी जाती है। ब्रेन डेथ के मामले में भी ऐसा हो सकता है।
लिविंग किडनी डोनेशन के लिए क्या है गाइडलाइन्स?
कानून, धर्म और बायोएथिक्स में लिविंग किडनी डोनेशन को स्वीकार किया गया है। इसमें डोनर अपनी मर्जी से बिना किसी दबाव के अपनी एक किडनी दान करने का फैसला लेता है। किडनी ट्रांसप्लांट से पहले डोनर की मेडिकल हिस्ट्री, फिजिकल एक्जामिनेशन, लैब टेस्ट, स्क्रीनिंग व अन्य कई जाँच की जाती है ताकि कुछ अहम बातों का पता लगाया जा सके, जैसे -
- डोनर स्वस्थ है और नेफेरेक्टोमी के बाद उसे कोई मेडिकल या सर्जिकल जोखिम का सामना नहीं करना पड़ेगा।
- दान करने के बाद भी डोनर का गुर्दा सही तरीके से काम करेगा।
- डोनर को किसी तरह का संक्रामक इंफेक्शन नहीं है।
- डोनर को न तो कोई मनोसामाजिक परेशानी (Psychosocial Problems) है और न ही होगी।
वहीं कुछ ऐसी परिस्थियां भी हैं जहाँ व्यक्ति किडनी डोनर नहीं बन सकता -
- 18 साल से कम उम्र
- 50 साल से कम उम्र के किसी व्यक्ति में हाइपरटेंशन (Hypertension), किसी अंग के डैमेज होने का प्रमाण मिलना या फिर तीन या उससे ज्यादा हाइपरटेंशन की दवाईयां लेना।
- डायबिटीज (Diabetes)
- थोम्रबोसिस या एम्बोलिज्म का इतिहास
- मनोरोग का संकेत
- मोटापा
- कोरोनरी धमनी रोग (Coronary Artery Disease)
- पेरिफेरल धमनी रोग
- फेफड़े की गंभीर बीमारी
- यूरोलॉजिकल समस्याएं
- एचआईवी इंफेक्शन
- हेपेटाइटिस बी
- हेपेटाइटिस सी
- किडनी स्टोन
- कैंसर
- मनोरोग का इतिहास
किडनी डोनर बनना किसी भी व्यक्ति के लिए बड़ा फैसला है। ये सच है कि किडनी दान करने से किसी की जिंदगी बचायी जा सकती है लेकिन इससे पहले ऊपर बताये गये सभी बातों पर ध्यान देना जरूरी है। इसके अलावा सरकार की गाइडलाइन्स में और भी कई बातों का जिक्र है, जिस पर खरा उतरने के बाद ही कोई व्यक्ति किडनी डोनर बन सकता है।
किडनी ट्रांसप्लांट व्यक्ति को मौत के मुँह से वापस ला सकता है और ये काम किडनी डोनर के बिना संभव नहीं। इसीलिए इस बारे में जानकारी और जागरूकता दोनों का होना जरूरी है।
Reference
1. Shroff, S., 2016. Current trends in kidney transplantation in India. Indian journal of urology: IJU: journal of the Urological Society of India, 32(3), p.173.
2. Notto, 2023. Guidelines for kidney transplantation living donor criteria - notto. Available at:
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