एक ही काम को दोहराते रहते हैं आप! कहीं आपको ओसीडी तो नहीं?
हाथों को बार-बार धोना, गंदगी दिखते ही बेचैन हो जाना, अपने काम को लेकर कंफ्यूजन में रहना, क्या आप भी इन आदतों के शिकार हैं? अगर हाँ, तो ये सिर्फ आदतें नहीं है बल्कि एक बीमारी है। जी हाँ, सही पढ़ा आपने ‘बीमारी’। मेडिकल साइंस की भाषा में इसे ओसीडी यानी कि ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (जुनूनी बाध्यकारी विकार) कहा जाता है।
ओसीडी एक सामान्य, दीर्घकालिक और लंबे समय तक चलने वाला विकार है, जिसमें व्यक्ति का अपने विचारों पर कोई नियंत्रण नहीं रहता है और वो एक ही कार्य को बार-बार दोहराने के लिए मजबूर हो जाता है।
ओसीडी के लक्षण
हर व्यक्ति में ओसीडी के अलग-अलग लक्षण नजर आते हैं, जो कि मुख्य रूप से 2 प्रकार के होते हैं-
1. जुनूनी विचार
- हर वक्त गंदगी या कीटाणुओं से संक्रमित होने का डर लगना।
- अपने विचारों पर नियंत्रण खो देना और हमेशा अपने आपको या दूसरों को नुकसान पहुँचाने का डर लगा रहना।
- किसी विनाशकारी घटना के लिए खुद को जिम्मेदार समझने का डर बना रहना।
- अनुचित गतिविधियों के बारे में सोचना या अजीब तरह के यौन संबंधी विचार मन में आना।
2. बाघ्यकारी व्यवहार
- बार-बार हाथों को धोना या जरा सी भी गंदनी दिखने पर बार-बार नहाना।
- वस्तुओं को बार-बार साफ करना।
- चीजों को क्रम में लगाते रहना।
- अपने ही काम की बार-बार जाँच करना जैसे लाइट बंद है या नहीं, गेट लॉक है या नहीं आदि।
- कुछ शारीरिक गतिविधियों को दोहराना जैसे बार-बार कुर्सी पर बैठना और उठना।
- एक ही बात को दोहराते रहना।
इस बारे में मनोचिकित्सक डॉ. शुभांगी रघुनाथ पारकर बताती हैं कि ओसीडी के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग नजर आते हैं। सिर्फ हाथों को धोते रहना या अपने काम की बार-बार जाँच करते रहना ही इस बीमारी के लक्षण नहीं है। इस बीमारी की 5 कैटेगरी है और उसी के अनुसार मरीज में लक्षण दिखाई देते हैं।
बच्चों में ओसीडी
वैसे तो ओसीडी के शुरुआती लक्षण अक्सर किशोरावस्था में दिखाई देते हैं, लेकिन कभी-कभी इसके लक्षण बचपन से ही नजर आने लगते हैं। ऐसे में बच्चों को निम्नलिखित परेशानियों से गुजरना पड़ता है-
- ओसीडी से पीड़ित बच्चों में आत्मविश्वास की कमी नजर आती है, जिसके कारण उनका आत्म सम्मान भी कम होने लगता है।
- इस बीमारी में बच्चे अपने रोजाना के कार्यों को ठीक से नहीं कर पाते हैं।
- पढ़ाई या होमवर्क करने में भी बच्चों को परेशानी होती है।
- ओसीडी से पीड़ित बच्चे तनाव के कारण शारीरिक रूप से बीमार रहते हैं।
- दूसरों से दोस्ती या नया रिश्ता बनाने में इन बच्चों को बहुत परेशानी होती है।
जब ओसीडी बचपन में शुरू होता है, तो यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक देखा जाता है। हालांकि, वयस्कता तक यह पुरुषों और महिलाओं को समान दर से प्रभावित करता है।
किन कारणों से हो सकता है ओसीडी?
ओसीडी के कारणों को लेकर कोई विशिष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन कुछ ऐसे रिस्क फैक्टर्स हैं, जिनकी वजह से व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित हो सकता है-
1. पारिवारिक इतिहास
अगर परिवार के किसी सदस्य को ओसीडी है, तो आने वाली पीढ़ी में ओसीडी विकसित होने की संभावना बनी रहती है।
2. मस्तिष्क में अंतर
ओसीडी वाले कुछ लोगों के मस्तिष्क में सेरोटोनिन नामक रसायन का स्तर कम होता है, जिसके कारण वो असामान्य गतिविधियां कर सकते हैं।
3. जीवन की घटनाएँ
ओसीडी के मामले उन लोगों में ज्यादा देखे जाते हैं, जिनके साथ कोई दर्दनाक या असामान्य घटना घटी हो। उदाहरण के तौर पर जिन लोगों को बहुत ज्यादा भयभीत या धमकाया गया हो या जिनके साथ बचपन में दुर्व्यवहार हुआ हो, उनमें ओसीडी के लक्षण नजर आ सकते हैं।
4. व्यक्तित्व
उच्च व्यक्तिगत मानकों वाले साफ-सुथरे एवं व्यवस्थित लोगों में ओसीडी विकसित होने की अधिक संभावना हो सकती है। साथ ही जिन लोगों के मन में स्वयं को और दूसरों को लेकर बहुत ज्यादा जिम्मेदारी का भाव मौजूद हो, उनमें भी ओसीडी विकसित हो सकता है।
ओसीडी का इलाज
ओसीडी का इलाज संभव है। मनोचिकित्सक की देखरेख में निम्नलिखित तरीकों से इस बीमारी का उपचार किया जा सकता है-
1. कॉगनिटिव बिहेवियर थेरेपी
इसे टॉक थेरेपी के नाम से भी जाना जाता है। इसमें मनोचिकित्सक मरीज की उस सोच, व्यवहार और भरोसे को बदलने की कोशिश करते हैं, जो उसके अंदर तनाव को बढ़ाती है। कॉगनिटिव बिहेवियर थेरेपी की मदद से ओसीडी के लक्षण को कंट्रोल करने में सहायता मिलती है। इस थेरेपी में मरीज को उन परिस्थितियों या सामानों से अवगत कराया जाता है, जो उनके डर और चिंता पैदा करते हैं। इस थेरेपी में मरीज को उनके जुनूनी व्यवहार को नियंत्रित करने के तरीके भी बताये जाते हैं।
2. दवाईयां
सेरोटोनिन रीपटेक इनहिबिटर (एसआरआई), जिसमें चुने हुए सेरोटोनिन रीपटेक इनहिबिटर (एसएसआरआई) शामिल रहते हैं, इसका उपयोग ओसीडी के लक्षणों को कम करने के लिए किया जाता है। डिप्रेशन की तुलना में ओसीडी के मरीजों को एसआरआई की हाई डोज दी जा सकती है। इन दवाईयों को असर दिखाने में 8 से 12 सप्ताह का समय लग सकता है। वहीं कुछ रोगियों के स्वास्थ्य में अधिक तेजी से सुधार होने लगता है।
कभी-कभी इस प्रकार की दवाओं से भी ओसीडी के लक्षणों में सुधार नहीं होता है। ऐसी स्थिति में मरीज़ों को एंटीसाइकोटिक दवाईयां दी जाती हैं। दवाई लेते वक्त निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-
- सबसे पहले अपने डॉक्टर या फार्मासिस्ट से बात कर दवाईयों के जोखिम और फायदों को समझ लें।
- डॉक्टर की सलाह के बिना खुद से दवाईयां लेना बंद न करें।
- अगर शरीर में किसी तरह का साइड इफेक्ट नजर आये, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें।
3. एंग्जायटी मैनेजमेंट तकनीक
स्लो ब्रीदिंग तकनीक, मेडिटेशन एवं अन्य रिलैक्सिंग विधियों को अपनाकर भी ओसीडी के लक्षणों से राहत पायी जा सकती है। इस तकनीक की मदद से व्यक्ति का तनाव कम हो सकता है, जिससे उनमें ओसीडी को कंट्रोल करने में मदद मिलती है।
निष्कर्ष
ज्यादातर लोग या तो ओसीडी के लक्षणों को नहीं जानते या फिर लोग क्या सोचेंगे, इस बात से डरकर अपनी बीमारी को नजअंदाज करते हैं। ऐसा बिल्कुल भी नहीं करना चाहिये क्योंकि अगर ओसीडी के लक्षण गंभीर हो गये, तो व्यक्ति के लिए बड़ी परेशानियां खड़ी हो सकती हैं। इसीलिए, सही समय पर ओसीडी के लक्षणों को पहचानें और बेझिझिक मनोचिकित्सक से संपर्क करें। मानसिक बीमारियों का इलाज कराने से कभी भी कतराएं नहीं।
Reference
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3. NHS, 2021. Overview - Obsessive compulsive disorder (OCD) Available at: (Accessed: 29 August 2023)
FAQ
ओसीडी क्या होता है?
ओसीडी एक मानसिक विकार है, जिसमें व्यक्ति का अपने विचारों पर कोई नियंत्रण नहीं रहता है और वो एक ही कार्य को बार-बार दोहराने के लिए मजबूर हो जाता है।
ओसीडी के लक्षण क्या हैं?
गंदगी से डरना, हाथों को बार-बार धोना, काम को लेकर संशय में रहना, अपने ही काम की बार-बार जाँच कराना, खुद या दूसरों को नुकसान पहुँचाने का विचार आना, चीजों को एक ही कम्र में रखना व अन्य ओसीडी के लक्षण हो सकते हैं।
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