अपनी बातों को दोहराते रहना, अगर स्कूल बैग में चीजें सही जगह पर न रखी हों तो गुस्सा करना, अपने ही ख्यालों में खोये रहना, बच्चों में इस तरह के लक्षण नजर आना बिल्कुल भी सामान्य नहीं है। हो सकता है कि वो बच्चे ओसीडी यानी कि ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (जुनूनी बाध्यकारी विकार) से पीड़ित हों। यह एक ऐसा विकार है, जिसमें बच्चों का अपने विचारों पर कोई नियंत्रण नहीं रहता है और वो एक ही कार्य को बार-बार दोहराने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
बच्चों में ओसीडी के लक्षण
ओसीडी का मतलब है जुनून (Obsession) एवं मजबूरियां (Compulsion) दोनों का होना और इसी आधार पर बच्चों में अलग-अलग लक्षण नजर आते हैं, जैसे-
- मन में बार-बार अवांछित विचारों का आना या दिमाग में ऐसी छवी बनना जो चिंता या संकट का कारण बनती है
- किसी चीज के बारे में बार-बार सोचते रहना
- एक ही बात को धीरे या फिर जोर से लगातार बोलते रहना
- हाथों को बार-बार धोना
- चीजों को एक ही क्रम में लगाना
- काम की बार-बार जाँच कराते रहना जैसे दरवाजा बंद है या नहीं, स्कूल बैग की चैन बंद है या नहीं आदि।
जानें बच्चों में ओसीडी का कारण
ज्यादातर शोधकर्ताओं का यही मानना है कि ओसीडी एक न्यूरोबायोलॉजिकल समस्या है। मस्तिष्क के कुछ रसायनों में असंतुलन होने के कारण यह बीमारी होती है, जबकि इसके कारणों को अभी भी पूरी तरह से समझा नहीं गया है। कुछ मामलों में आनुवंशिक तो कुछ में स्ट्रेप संक्रमण इस बीमारी का कारण हो सकते हैं।
ओसीडी कभी भी गलत पालन-पोषण के कारण नहीं होता है और न ही यह दुर्व्यवहार या आत्म विश्वास की कमी का संकेत है। वैसे तो तनाव भी ओसीडी का प्रत्यक्ष कारण नहीं है लेकिन कोई तनावपूर्ण घटना या जीवन में अचानक से आया बदलाव, इसकी शुरुआत को गति दे सकता है। कुछ सामान्य उदाहरणों में शामिल हैं-
1. किसी अपने की मौत
अगर बच्चा परिवार के किसी सदस्य से बहुत ज्यादा कनेक्टेड हो और अचानक से उसकी मौत हो जाये, तो ऐसे में बच्चा ओसीडी का शिकार हो सकता है। ऐसे में न चाहते हुए भी बच्चा अजीब सा व्यवहार करने लगता है।
2. भाई या बहन का जन्म होना
कुछ बच्चे अपने भाई या बहन के जन्म के बाद खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि अब परिवार के लोग उसे छोड़, उसके छोटे भाई या बहन को ज्यादा प्यार करते हैं और इसके कारण उनमें ओसीडी के लक्षण नजर आ सकते हैं।
3. तलाक
परिवार में अगर किसी का तलाक हुआ है, विशेष रूप से जिन बच्चों के माता-पिता अलग हो चुके हैं, वे बच्चे अक्सर मानसिक रूप से तनाव में रहते हैं। यही तनाव उनमें ओसीडी का कारण बन सकता है।
4. नये स्कूल में जाना
अपने पुराने दोस्तों, फेवरेट टीचर्स व मनपसंद वातावरण को छोड़कर अचानक से दूसरे स्कूल में जाना भी बच्चों में ओसीडी का कारण बन सकता है। कई बार बच्चों को नये स्कूल में अपने आपको एडजस्ट करने में परेशानी होती है या उन्हें अपने मनपसंद दोस्त या टीचर्स नहीं मिलते हैं, तो उनमें मानसिक विकार पैदा होने लगता है।
5. नये घर या मुहल्ले में जाना
स्कूल की तरह ही अचानक से घर या मुहल्ले का बदलना भी बच्चों को मानसिक रूप से प्रभावित करता है। ऐसी परिस्थिति से गुजरे बच्चे ओसीडी का शिकार हो सकते हैं।
6. किसी तरह की बीमारी
कई बार कुछ गंभीर बीमारियां जैसे डिप्रेशन, एंग्जायटी, अनिद्रा आदि बच्चे के मस्तिष्क को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं, जिसके कारण बच्चों में ओसीडी के लक्षण नजर आ सकते हैं।
सामान्य तौर पर बच्चों में ओसीडी की शुरुआत 10 साल की उम्र से होती है। लड़कों में 7 से 12 साल की उम्र के बीच ओसीडी विकसित होने की संभावना ज्यादा होती है, जबकि लड़कियां किशोरावस्था में इस बीमारी से पीड़ित हो सकती हैं।
बच्चों में ओसीडी का निदान
कोई भी प्रयोगशाला परीक्षण
ओसीडी की पहचान नहीं कर सकता लेकिन एक अनुभवी मनोचिकित्सक इसकी पहचान अवश्य कर सकता है। मरीज को ओसीडी है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए मनोचिकित्सक एक सेशन का आयोजन करते हैं। अधिकांश मनोचिकित्सक ओसीडी के निदान के लिए येलो-ब्राउन ऑब्सेसिव कंपल्सिव स्केल (Y-BOCS) का उपयोग करते हैं। इसके दो संस्करण होते हैं एक वयस्कों के लिए और एक बच्चों के लिए।
ओसीडी से पीड़ित बच्चे अक्सर अन्य मानसिक विकारों से जूझते रहते हैं, जैसे क्लीनिकल डिप्रेशन, एडीएचडी या फिर अन्य एंग्जायटी डिसऑर्डर। बच्चा कौन से मनोविकार से पीड़ित है और किस कारण उनमें ओसीडी के लक्षण विकसित हुए हैं, इसका पता लगाने के बाद ही बच्चे का इलाज किया जाता है।
क्या है बच्चों में ओसीडी का इलाज?
बच्चों में ओसीडी के इलाज के लिए संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (Cognitive Behavioural Therapy) के एक प्रकार का उपयोग किया जाता है, जिसे एक्सपोजर और रिस्पॉन्स प्रिवेन्शन (ईआरपी) कहते हैं।
ईआरपी में बच्चे अपनी मजबूरियों के आगे झुके बिना अपने डर का सामना करना सीखते हैं। वहीं अगर बच्चे में ओसीडी के लक्षण गंभीर हैं और ईआरपी से मदद नहीं मिल रही है, तब मनोचिकित्सक दवाईयां देने पर विचार कर सकते हैं। एक विशिष्ट प्रकार के एंटीडिप्रेसेंट जिसे सेरोटोनिन रीपटेक इनहिबिटर (एसआरआई) के रूप में जाना जाता है, बच्चों और किशोरों में ओसीडी के लक्षणों को कम करने में सहायक पाए गए हैं। इसकी मदद से ईआरपी करना और भी ज्यादा आसान और प्रभावी हो गया है।
निष्कर्ष (Conclusion)
बच्चों में
ओसीडी का इलाज संभव है लेकिन हमेशा अनुभवी और जानकर मनोचिकित्सक की देखरेख में ही इस बीमारी का इलाज कराएं। डॉक्टर द्वारा निर्धारित दवाईयां ही बच्चे को दें और उसका विशेष ख्याल रखें ताकि बच्चा ओसीडी के लक्षणों से जल्द से जल्द उभर सके।
Reference
2. CDC, 2023. Obsessive-Compulsive Disorder in Children
Available at: (Accessed: 5th September 2023).
3. Obsessive Compulsive Foundation of Metropolitan Chicago, 2006. How to Help Your Child A Parents Guide to OCD
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4. International OCD Foundation, 2023. How is OCD Treated? - OCD in Kids
Available at: (Accessed: 5 September 2023).
बच्चों में ओसीडी के लक्षण क्या हैं?
मन में बार-बार अवांछित विचारों का आना,किसी चीज के बारे में बार-बार सोचते रहना, एक ही बात को दोहराना, हाथों को बार-बार धोना, चीजों को एक ही क्रम में लगाना
आदि लक्षण बच्चों में ओसीडी का संकेत हो सकते हैं।
किस उम्र में बच्चों को हो सकता है ओसीडी?
सामान्य तौर पर बच्चों में ओसीडी की शुरुआत 10 साल की उम्र से होती है। लड़कों में 7 से 12 साल की उम्र के बीच ओसीडी विकसित होने की संभावना ज्यादा होती है, जबकि लड़कियां किशोरावस्था में इस बीमारी से पीड़ित हो सकती हैं।
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