नवजात शिशु में पीलिया होना आम समस्याओं में से एक है। 50 से 60% नवजात जन्म के पहले हफ्ते में ही इस बीमारी का शिकार हो जाते हैं। (Ref - file:///W:/July/Komal/41_Jaundice.pdf) खून में बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ने पर ये बीमारी होती है। वैसे ये बीमारी शिशुओं को ज्यादा नुकसान नहीं पहुँचाती लेकिन सही समय पर पीलिया का इलाज होना बच्चे के स्वास्थ्य के लिए जरूरी होता है।
नवजात शिशु में पीलिया का इलाज कराने से पहले जान लें इसके लक्षण (Ref)
- आंखों और त्वचा का पीला पड़ना
- बुखार
- बच्चे का जरूरत से ज्यादा सोते रहना
- दूध नहीं पीना
- पेशाब का रंग गहरा पीला होना
पीलिया के लक्षण ज्यादातर बच्चों में जन्म के लगभग 2 दिन बाद नजर आते हैं और जब बच्चा 2 सप्ताह का होता है, तब तक ये लक्षण ठीक हो जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ, समय से पहले पैदा हुए बच्चों में पीलिया होने का खतरा अधिक होता है। इन बच्चों में जन्म के 5 से 7 दिन बाद पीलिया के लक्षण नजर आते हैं, जो लगभग 3 सप्ताह तक रहते हैं। वैसे ज्यादातर बच्चों में
पीलिया का इलाज कराने की जरूरत नहीं होती है क्योंकि उनके रक्त में बिलीरुबिन का स्तर बहुत ज्यादा कम होता है।
पीलिया का इलाज कराने के लिए कब लें चिकित्सक से सलाह?
अगर बच्चे में निम्नलिखित गंभीर लक्षण नजर आते हैं, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिये-
(Ref)
- त्चवा का और ज्यादा पीला होना
- शिशु को जगाने में परेशानी होना
- वजन न बढ़ना
- शिशु का बहुत ज्यादा रोना
- दूध बिल्कुल भी न पीना
- 2 हफ्ते बीत जाने के बाद भी पीलिया के लक्षणों का ठीक न होना
ऐसे में पीलिया क इलाज कराने के लिए बच्चे को तुरंत अस्पताल ले जाना बेहतर होता है।
इन तरीकों से किया जाता है पीलिया का इलाज (Ref)
1) फोटोथेरेपी
इसमें एक विशेष प्रकार की रोशनी (सूरज की रोशनी नहीं) से पीलिया का इलाज किया जाता है। बच्चे के रक्त में बिलीरुबिन के स्तर को कम करने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया के शुरू होने के बाद हर 4 से 6 घंटे में बिलीरुबिन के स्तर की जाँच की जाती है। जब बच्चे के खून में बिलीरुबिन का स्तर सामान्य हो जाता है, तब फोटोथेरेपी प्रक्रिया रोक दी जाती है। इस प्रक्रिया में 1 या 2 दिन का वक्त लग सकता है।
2) एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन
अगर बच्चे के रक्त में बिलीरुबिन का स्तर बहुत ज्यादा हो जाये और फोटोथेरेपी भी काम न आये, तब पूर्ण ब्लड ट्रांसफ्यूजन से
पीलिया का इलाज किया जाता है। इसे एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन भी कहते हैं। इस प्रक्रिया में एक पतली प्लास्टिक ट्यूब के माध्यम से बच्चे की गर्भनाल एवं हाथों या पैरों की ब्लड वेसेल्स से रक्त को बाहर निकाल लिया जाता है और मैचिंग डोनर से उस रक्त को बदल दिया जाता है। इसके 2 घंटे बाद बच्चे का रक्त परीक्षण किया जाया है ताकि ये प्रक्रिया सफल हुई है या नहीं, इसका पता लगाया जा सके। अगर इसके बाद भी बच्चे के रक्त में बिलीरुबिन का स्तर ऊंचा रहता है, तो ये प्रक्रिया दोहरायी जा सकती है।
नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण क्या हैं?
नवजात शिशु को पीलिया होने पर आंखों और त्वचा का पीला पड़ना, बुखार, बच्चे का जरूरत से ज्यादा सोते रहना, दूध नहीं पीना, पेशाब का रंग गहरा पीला होना आदि लक्षण नजर आ सकते हैं।
क्या नवजात शिशु में पीलिया का इलाज कराने की जरूरत नहीं पड़ती है?
कई शिशुओं के रक्त में बिलीरुबिन का स्तर बहुत कम होता है। ऐसे में उन्हें इलाज की जरूरत नहीं पड़ती और 10 से 14 दिनों में ये बीमारी ठीक हो जाती है। वहीं अगर 2 हफ्ते बीत जाने के बाद भी बच्चे में पीलिया के गंभीर लक्षण नजर आते हैं, तो फोटोथेरेपी और एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन की मदद से इसका इलाज किया जाता है।
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