सावधान! ये 5 रिस्क फैक्टर्स बढ़ा सकते हैं फैटी लीवर का खतरा
लीवर हमारे शरीर का एक बेहद अहम हिस्सा है। खाना पचाने से लेकर शरीर से जहरीले पदार्थों को बाहर निकालने तक का काम लीवर द्वारा किया जाता है। इसीलिए, लीवर को स्वस्थ रखने पर फोकस करना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। गलत लाइफस्टाइल और खानपान में गड़बड़ी व्यक्ति में लीवर संबंधी बीमारियां होने का मुख्य कारण बन चुकी हैं। इन्हीं बीमारियों में से एक फैटी लीवर (Fatty Liver Hindi)। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में यह समस्या बेहद आम है।
जानें क्या होता है फैटी लीवर?
लीवर में वसा यानी कि फैट का जमाव होने की समस्या को फैटी लीवर कहा जाता है। लीवर में अगर फैट की मात्रा 5% भी ज्यादा हो जाये, तो व्यक्ति इस परेशानी का शिकार हो सकता है।
फैटी लीवर के लक्षण
फैटी लीवर (Fatty Liver Hindi) रोग को साइलेंट डिजीज के रूप में जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार इस बीमारी के बढ़ने के बाद भी व्यक्ति को किसी भी तरह के लक्षणों का अनुभव नहीं होता है। हालांकि, जब यह समस्या बहुत ज्यादा बढ़ जाती है, तब व्यक्ति में निम्नलिखित लक्षण नजर आ सकते हैं-
- हर वक्त थका हुआ या अस्वस्थ महसूस करना
- पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में दर्द होना
- वजन हम होना
- भूख न लगना
- उल्टी होना
अगर फैटी लीवर (Fatty Liver Hindi) एक गंभीर रोग में बदल जाये तो व्यक्ति को और भी कई लक्षणों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे-
- आंखें और त्वचा का पीला पड़ना (पीलिया)
- गहरे रंग का पेशाब
- पेट में सूजन
- खून की उल्टी होना
- काला मल (मल)
- त्वचा में खुजली
इस तरह के लक्षण नजर आने पर व्यक्ति को तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिये।
फैटी लीवर रोग के प्रकार
फैटी लीवर रोग मुख्य रूप से 2 प्रकार का होता है- नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लीवर डिजीज (एनएएफएलडी) और एल्कोहॉलिक फैटी लीवर डिजीज।
1) नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लीवर डिजीज
एनएएफएलडी (अक्सर इसे 'फैटी लीवर' के रूप में जाना जाता है) सबसे कॉमन रोग है, जिससे ज्यादातर लोग पीड़ित होते हैं। यह बीमारी शराब के सेवन से नहीं होती है। गलत खानपान या फिर लाइफस्टाइल से जुड़ी अन्य समस्याओं के कारण व्यक्ति को यह परेशानी हो सकती है। एनएएफएलडी के अंतर्गत दो अलग-अलग स्थितियाँ आती हैं-
i) साधारण फैटी लीवर
यह तब होता है जब लीवर में फैट तो जमा होता है, लेकिन लीवर की कोशिकाओं को बहुत कम या कोई नुकसान नहीं पहुँचता है।
ii) नॉन एल्कोहॉलिक स्टीटोहेपेटाइटिसजिस (एनएएसएच)
इस अवस्था में व्यक्ति के लीवर में फैट जमा होने के साथ-साथ सूजन की समस्या बढ़ जाती है और लीवर की कोशिकाओं को भी बहुत ज्यादा नुकसान पहुँचता है। अगर यह तकलीफ बहुत ज्यादा बढ़ जाये, तो व्यक्ति लीवर कैंसर या सिरोसिस का शिकार हो सकता है।
2) एल्कोहॉलिक फैटी लीवर डिजीज
जो लोग शराब का अत्यधिक सेवन करते हैं उनमें यह रोग विकसित हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप लीवर कोशिकाएं क्षतिगस्त हो जाती हैं और वहाँ सूजन की स्थिति पैदा हो सकती है। यह शराब से संबंधित लीवर रोग का पहला चरण होता है। अगर इसी दौरान कोई व्यक्ति शराब का सेवन बंद कर दे तो वो जल्दी इस बीमारी से स्वस्थ हो सकता है। अगर ऐसा न हो, तो एल्कोहॉलिक फैटी लीवर डिजीज हेपेटाइटिस या सिरोसिस जैसी गंभीर बीमारियों में तब्दील हो सकती है।
फैटी लीवर डिजीज के रिस्क फैक्टर्स
फैटी लीवर (Fatty Liver Hindi) रोग का कारण पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। हालांकि, यहाँ आनुवंशिकी एक अहम भूमिका निभा सकती है। वर्ल्ड जर्नल ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के एक लेख के अनुसार, कुछ विशिष्ट जीन किसी व्यक्ति में एनएएफएलडी विकसित होने की संभावना 27% तक बढ़ा सकते हैं। वैसे निम्नलिखित रिस्क फैक्टर्स भी फैटी लीवर का कारण बन सकते हैं-
i) मोटापा
बढ़ता वजन शरीर में ज्यादा मात्रा में फैट, बैड कोलेस्ट्रॉल एवं ट्राइग्लिसराइड के बढ़ने का संकेत होता है। ऐसे में लीवर में फैट का जमा होना लाजमी है।
ii) उच्च रक्तचाप
अनियंत्रित रक्तचाप भी फैटी लीवर का कारण बन सकता है। अध्ययनों के मुताबिक हाइपरटेंशन के मरीजों में यह समस्या ज्यादा देखी जाती है।
iii) इंसुलिन रेजिस्टेंस
जब शरीर में इंसुलिन का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में नहीं होता है तो रक्त में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। इसके कारण व्यक्ति डायबिटीज का शिकार हो जाता है, जो फैटी लीवर के खतरे को बढ़ाता है।
iv) मेटाबॉलिक सिंड्रोम
यह हेल्थ कंडीशन का एक ग्रुप है जिसमें मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, हाई ब्लड शुगर लेवल, एब्नॉर्मल लिपिड प्रोफाइल जैसी समस्याएं शामिल हैं। इन सभी परेशानियों का प्रभाव लीवर की कार्यक्षमता पर पड़ता है और व्यक्ति फैटी लीवर रोग का शिकार हो सकता है।
v) शराब
नियमित रूप से शराब पीना लीवर को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाता है। इससे एल्कोहॉलिक फैटी लीवर डिजीज का जोखिम बढ़ जाता है।
फैटी लीवर रोग के कुछ सामान्य कारणों में हेपेटाइटिस सी संक्रमण, तेजी से वजन कम होना और डिल्टियाज़ेम और ग्लुकोकोर्टिकोइड्स जैसी कुछ दवाईयों का सेवन शामिल है।
कैसे करें फैटी लीवर का प्रबंधन?
इस बारे में गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट, डॉ. धवल व्यास बताते हैं कि लाइफस्टाइल में बदलाव करके इस बीमारी को मैनेज किया जा सकता है। इनमें नियमित रूप से शारीरिक गतिविधियां करना, कैलोरी एवं वसा युक्त चीजों के सेवन से परहेज करना एवं ज्यादा मात्रा में प्रोटीन को डाइट में शामिल करना शामिल हैं।
क्या है फैटी लीवर का इलाज?
एनएएफएलडी के इलाज के लिए वर्तमान में कोई दवाईयां उपलब्ध नहीं है। शरीर का वजन 7-10% तक कम करने से इस रोग में सुधार हो सकता है। हालांकि, बहुत जल्दी वजन कम करने से एनएएफएलडी बदतर हो सकती है। इसीलिए धीरे-धीरे वजन कम करना जरूरी है और इसका सबसे आसान तरीका है- संतुलित आहार और नियमित व्यायाम।
जो लोग एल्कोहॉलिक फैटी लीवर डिजीज से पीड़ित हैं, वे शराब का सेवन न करके लीवर की क्षति और सूजन को ठीक करने में सक्षम हो सकते हैं या इसे खराब होने से रोक सकते हैं। कुछ लोगों को शराब छोड़ने में बहुत ज्यादा परेशानी हो सकती है। ऐसे में डॉक्टर की सलाह के अनुसार एक व्यवस्थित तरीके से शराब छोड़ने के लिए आवश्यक कदम उठाये जा सकते हैं। एनएएसएच और अल्कोहलिक फैटी लीवर रोग की जटिलताओं में सिरोसिस और लीवर का कैंसर होना शामिल है। इस स्तर पर दवा और सर्जरी दोनों उपचार के तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है। लीवर खराब होने लीवर प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ सकती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
फैटी लीवर से बचाव करना आपके हाथों में है। बस अपने खानपान का ध्यान रखें। लीवर का ख्याल रखना बेहद जरूरी है। अगर इस मामले में लापरवाही की गयी तो व्यक्ति गंभीर बीमारियों का शिकार हो सकता है, जो उसके लिए जानलेवा भी साबित हो सकती है।
Reference
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फैटी लीवर डिजीज के सामान्य लक्षण क्या हैं?
हर वक्त थका हुआ या अस्वस्थ महसूस करना, पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में दर्द होना, वजन हम होना, भूख न लगना व उल्टी होना फैटी लीवर डिजीज के सामान्य लक्षण हैं।
फैटी लीवर डिजीज के रिस्क फैक्टर्स क्या हैं?
शराब, मोटापा, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज व अन्य कई समस्याएं व्यक्ति में फैटी लीवर डिजीज का जोखिम बढ़ा सकती हैं।
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