इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF), गर्भधारण (आइवीएफ प्रेगनेंसी) की एक सहायक और प्रभावी तकनीक है।1 आइवीएफ प्रेगनेंसी की मदद उन कपल्स द्वारा ली जाती है जो सामान्य रूप से गर्भधारण करने में सक्षम नहीं होते हैं।
इसे लेकर कई शोध में यह सामने आया है कि आईवीएफ की सफलता दर महिला की उम्र और अन्य कारकों के आधार पर 30-45% तक होती है। आमतौर पर, कम उम्र की महिलाओं में IVF की सफलता दर अधिक होती है।
आयु के अनुसार सफलता दर
- 35 वर्ष से कम : 52.7% सफलता दर
- 35-37 वर्ष : 38% सफलता दर
- 38-40 वर्ष : 24.4% सफलता दर
- 40 वर्ष से अधिक : 7.9% सफलता दर
डॉ शिप्रा बागची, स्त्री रोग, फर्टिलिटी एवं आइवीएफ विशेषज्ञ, लखनऊ, उत्तर प्रदेश से बताती हैं कि आईवीएफ की प्रक्रिया तब की जाती है जब महिला के शरीर में अंडे फर्टिलाइज नहीं हो पाते हैं।2 इस प्रक्रिया में महिला के अंडे को पुरुष के स्पर्म के साथ लैब में फर्टिलाइज किया जाता है। जब अंडे फर्टिलाइज हो जाते हैं, तो उसे मां के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
इस ब्लॉग में हम आइवीएफ से जुड़ी हर प्रक्रिया पर चर्चा कर रहे हैं, जिससे आपकी आइवीएफ संबंधी हर समस्या का समाधान हो सके।
इन परिस्थितियों में विकल्प बन सकता है आइवीएफ
- अगर महिला स्वाभाविक रूप से गर्भवती होने में असमर्थ हो।
- किसी व्यक्ति या कपल्स को बांझपन की समस्या हो।
- पुरुष साथी में असामान्य शुक्राणु हो।
- महिला का फैलोपियन ट्यूब अवरुद्ध हो।
आइवीएफ प्रक्रिया के प्रमुख चरण (Important Steps of IVF Process)
- अंडाणु उत्पादन को प्रोत्साहित करना (ओवेरियन स्टिमुलेशन): इसके लिए महिला को हार्मोनल दवाएं दी जाती हैं, ताकि अंडाशय में कई अंडाणु विकसित हो सकें। यह प्रक्रिया आमतौर पर 8 से 14 दिनों तक चलती है, इस दौरान रोज़ाना 1-2 इंजेक्शन दिए जाते हैं।
- अंडाणु संग्रहण (एग रिट्रीवल): जब अंडाणु परिपक्व हो जाते हैं, तो एक छोटे सर्जिकल प्रक्रिया द्वारा उन्हें अंडाशय से निकाला जाता है।
- निषेचन (फर्टिलाइजेशन): अंडाणुओं को प्रयोगशाला में शुक्राणुओं (Sperm) के साथ मिलाया जाता है, जिससे भ्रूण का निर्माण होता है।
- भ्रूण प्रत्यारोपण (एम्ब्रियो ट्रांसफर): सफल निषेचन के बाद, स्वस्थ भ्रूण को महिला के गर्भाशय में स्थापित किया जाता है, जिससे गर्भधारण (आइवीएफ प्रेगनेंसी) की संभावना बढ़ती है।
आइवीएफ से जुड़े जोखिम (Risks associated with IVF)
- मल्टीपल प्रेग्नेंसी: आइवीएफ से जुड़वां या अधिक भ्रूण विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे समय से पहले और कम वजन वाले शिशु के जन्म का खतरा रहता है।
- अंडाशय सिंड्रोम (OHSS): हार्मोनल उपचार के कारण कुछ महिलाओं में अंडाशय में सूजन और दर्द हो सकता है।
- सर्जरी की जटिलताएँ: अंडाणु निकालने के दौरान किए जाने वाले सर्जरी से संक्रमण, रक्तस्राव या अन्य जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
आइवीएफ की प्रक्रिया (Process of IVF)
आईवीएफ तकनीक से गर्भधारण (आइवीएफ प्रेगनेंसी) प्रक्रिया को शुरू करवाने से पहले कपल्स के कई मेडिकल व प्रजनन क्षमता की जांच की जाती है। इस प्रक्रिया में शामिल हैं -
- आईवीएफ की प्रक्रिया अपनाने के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर से मिलें।
- इसके बाद महिला साथी के गर्भाशय की जांच, पैप टेस्ट और मैमोग्राम (अगर उम्र 40 से अधिक) किए जाते हैं।
- पुरुष साथी के स्पर्म की जांच की जाती है।
- यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई) और अन्य संक्रामक रोगों की जांच।
- ओवेरियन रिज़र्व टेस्टिंग, रक्त और मूत्र परीक्षण किए जाते हैं।
- प्रजनन क्षमता की दवाएँ कैसे दी जाएँ, इस पर डॉक्टर निर्देश देते हैं।
- जेनेटिक कैरियर की जांच
- अंत में प्रक्रिया को अपनाने के लिए सहमति फॉर्म पर हस्ताक्षर करना होता है।
आइवीएफ के साइड इफेक्ट्स
कई महिलाओं में आइवीएफ के दौरान बहुत कम या बिलकुल भी साइड इफ़ेक्ट नहीं होते हैं। हालांकि, कुछ महिलाओं को साइड इफ़ेक्ट हो सकते हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं -
- थकान
- पेट में दर्द
- स्तनों में दर्द
- चिड़चिड़ापन
- मतली
- सिरदर्द
- सांस लेने में तकलीफ
- डिहाइड्रेशन
- उल्टी या पेट में दर्द जिसके लिए अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत हो सकती है।
- मूड्सविंग्स
- आइवीएफ की प्रक्रिया आमतौर पर दर्दनाक नहीं होती है लेकिन इसके कुछ चरणों में हल्की असुविधा का अनुभव हो सकता है।
- आइवीएफ में प्रजनन क्षमता की दवा का इंजेक्शन शामिल होता है, इसलिए इंजेक्शन वाली जगह पर हल्की खरोंच और दर्द हो सकता है। महिलाओं को पेट में ऐंठन का अनुभव भी हो सकता है जो दर्दनाक होता है।
- शरीर से अंडे को निकालने की प्रक्रिया आम तौर पर दर्दनाक नहीं होती है क्योंकि प्रक्रिया से पहले दर्द की दवा दी जाती है।
- भ्रूण स्थानांतरण भी आमतौर पर दर्दनाक नहीं होता है
निष्कर्ष:
आइवीएफ प्रेगनेंसी उन दंपतियों के लिए एक प्रभावी समाधान है, जो संतान प्राप्ति में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। हालांकि यह प्रक्रिया कई चुनौतियों और संभावित जटिलताओं के साथ आती है। इसलिए, आइवीएफ से पहले विशेषज्ञ डॉक्टर से सलाह लेना और सभी विकल्पों पर विचार करना आवश्यक होता है।
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